सांसार में चार प्रकार के लोग ही होते हैं।
#पहले वे अज्ञानी जो स्वभाव से उग्र और व्यवस्था में यकीन न करने वाले, दूसरों की बातों से जल्दी प्रभावित होने वाले #नास्तिक लोग। इस प्रकार के भोले और मूर्ख लोगों को एक विशेष वर्ग आगे कर के अपना स्वार्थ साधने की कोशिश करते है और इनका उत्थान कभी नहीं होने देते।
#दूसरे भी वो अज्ञानी लोग जो व्यवस्था को मानने वाले, सदियों से चली आ रही प्रथा को मानते हुए ईश्वर की सत्ता और दासता स्वीकारने वाले #आस्तिक लोग। इन्हे आसानी से समाज के कुछ लोग अंधविश्वास में जकड़ के अपनी गुलामी करवाते हैं। धर्म और भगवान को अपना उद्योग और बाजार समझ फलते फूलते हैं।
#तीसरे वह लोग जो सीमित शिक्षित और अल्प ज्ञानी तथा दंभी होते हैं। वह तर्क के दो चार शब्द और मिथ्या तथा भ्रामक तथ्य को अपना ज्ञान समझते है। वह पहले नास्तिक मूर्ख प्रकार के लोगों के बीच घिरे रहते हैं, उसी को अपनी दुनिया और व्यवथा समझते हैं। वह लोग अपने अल्प ज्ञान से “ढोल, गवार,शुद्र, पशु, नारी” जैसे का हवाला देकर पहले प्रकार के मूर्ख लोगों को यह समझाते है कि देखो कैसे भगवान के आदर्श लिखित पुस्तक में भी तुम तुम लोगों को पीटने मारने की बात का महिमामंडन किया गया है, जबकि भगवान के आदर्श जिसमे पशु नारी और शुद्र को कैसे सम्मान दिया ये बात छुपाते हैं।
#चौथे प्रकार के लोग जो परम ज्ञानी, बुद्धिमान और अनुभवी होते हैं जो ईश्वर और कर्म में बेहतर सामंजस्य बैठाते हुए अपने जीवन को सफल बनाने में लगे होते हैं। धर्म को ईश्वर और कर्म की पूजा उनका मूल मंत्र होता है। ऐसा तभी संभव हो पाता है जब व्यक्ति अपने अवगुणों जैसे लाभ हानि, मोह माया, आसक्ति विरक्ति, शत्रु मित्र, दुख सुख, मिलन वियोग, जन्म मृत्यु आदि से ऊपर उठ गया हो। ये सही मायने में आस्तिक लोग ईश्वर को समझ पाते है, ईश्वर से बात कर पाते हैं, उन्हे देख पाते है क्योंकि वे जान जाते हैं कि कण कण में ईश्वर है। ये प्रकृति ईश्वर का रूप है। सूर्य, वायु, जल, वृक्ष, धरती ये सब ईश्वर का रूप है, जिसकी पूजा होती है।
अगर प्रकृति ईश्वर का रूप है तो उसने इस पर विचरण करने वाले हर जीव में अपना अंश दिया हुआ है अतः संसार में विचरण करने वाले हर जीव में ईश्वर है। नर नारी, पशु पक्षी सब ईश्वर ही तो है और सदियों से इनकी भी तो पूजा होती ही आई है।
ये परम #आस्तिक लोग यह भी जानते हैं कि वन, हिमालय या एकांत में तपस्या या पूजा करने में जो सुख नही मिलता वह ईश्वर प्रकृति और उसके बनाए ईश्वर के हर रूप की सेवा करने से तत्काल बेहतर सुख और संतुष्टि मिलती है।
इन चारो श्रेणी के लोग हमारे आस पास पाए जाते हैं लेकिन कोई गलत नही है। पहली से चौथी कक्षा तक पढ़ते और बढ़ते रहने की जरूरत है।
हम सभी को चतुर्थ श्रेणी तक अपने ज्ञान और अनुभव को बढ़ाते रहने की आवश्यकता है तब जरूर आप भी ईश्वर होगे और आप की भी पूजा होगी।
✍️… डा0 गिरिराज सिंह