85 वर्षीय महिला रोगी को देखने के लिए उसके घर गया। रोगी के लड़के ने बताया की एक सप्ताह पहले यह गिर गई थी तब से बिस्तर से उठ नहीं पा रही हैं। करवट भी बदलने में जोर-जोर से चिल्लाती है। बहुत कमजोर हो गई हैं। कई दिनों से घर पर ही बोतल चढ़ रहा है, दर्द और ताकत की दवा दे रहे हैं पर शरीर में ताकत नहीं आ रही है। डॉक्टर हॉस्पिटल में एडमिट करने को बोल रहे हैं लेकिन यह कहीं भी जाना नहीं चाह रही है। पैखाना पेशाब भी बिस्तर पर ही कर रही है।
अवलोकन – रोगी बिस्तर पर लेटी हुई है और बड़ी-बड़ी आंखों से मुझे देख रही है और अपने लड़के से इशारे से पूछी यह कौन है? लड़के ने बताया पर वह समझ नहीं पाई या सुन नहीं पाई फिर से इशारे से पूछी ये कौन है ?
रोगी का लड़का – इन्होंने 3 दिन से बोलना बंद कर दिया है पहले तो पूरे दिन बोलते ही रहते थे और खाना भी छोड़ दिया है, खाना दिए जाने पर भी नहीं खाती हैं, पहले तो हमेशा कुछ न कुछ खाने को मांगते रहते थे। शायद इन्होंने मन में सोच लिया है कि अब मर जाना है पर बताती कुछ नहीं है। इनका पहले से स्वभाव ऐसा है कि कोई भी दवा दिए जाने पर बोलती है तुम लोग मुझे मोक्ष की पानी के साथ दवा दे रहे हो और दवा नहीं लेती हैं। अभी कुछ महीनो से रात को सोती नहीं है और कोई भी बात बोलते रह जाती थी इसलिए पहले से साइकेट्रिक की दवा चलती है, लेकिन यह कोई भी दवा हाथ में लेकर नहीं खाती हैं, पाउडर बनाकर खाने में देना पड़ता है। इनको शंका रहता है कि हम लोग इनको मृत्यु हो जाए ऐसी दवा दे रहे हैं।
मैंने पूछा- इनको चोट कहां-कहां लगी है?
रोगी का लड़का और बहु ने चोट वाली जगह को दिखाया, ललाट पर चोट लगी थी और वहां खून जम गया था। कमर में चोट लगी थी लेकिन वहां चोट का कोई निशान नहीं है, सूजन भी नहीं है।
मैं बोला- इनको बैठाइये।
बेटे और बहू ने पड़कर उठाने की कोशिश किया, रोगी रोने लगी, बोली बहुत दर्द कर रहा है। रोगी ने अपने दोनों हाथों से उन लोगों को पकड़े रखा, और उठने के लिए ना बोल रही थी। बेटे और बहू ने बैठा दिया पर वह दोनों हाथ से दोनों को पकड़कर रखी थी।
मैंने बोला- ठीक है लेटा दीजिए!
यह पूरे दिन क्या करती हैं?
रोगी का लड़का – पूरे दिन इसी तरह से लेटे रहती हैं। अभी ऊपर जाने जैसी तैयारी हो गई है इसलिए सभी संबंधी लोग मिलने आ रहे हैं, घर में सब मिलने वाले जो भी इनके पास बैठता है उसको यह कस करके पकड़ लेती हैं ,हाथ छुड़ाने से भी नहीं छोड़ती है, तब पता नहीं कहां से ताकत आ जाती है। बोलती कुछ नहीं है, केवल हां ना या इशारे में बोलती हैं। पहले तो घर में कोई भी आता था तो भर दिन बातें करते रहती थी। इनको कुछ भी तकलीफ होता था तो सबको बताती थी कि मुझे यह होता है मुझे वह होता है। आजकल कुछ बोल नहीं रही है। कभी-कभी हम लोग बार बार कुछ बोलते हैं तो कुछ बोलती हैं जैसे कि हम लोग उठाएंगे तो बोलती है गिर जाऊंगी गिर जाऊंगी, बहुत दर्द कर रहा है।
मैनें पूछा- तो क्या पूरे दिन ऐसे ही अकेले में लेटे रहते हैं?
रोगी का लड़का – इनको तो पहले भी और अभी भी अकेले अच्छा नहीं लगता है कोई ना कोई तो पास में होना चाहिए नहीं तो रोने लगती हैं।
– ( मैं रोगी से बातचीत करने की कोशिश किया लेकिन रोगी सिर्फ बड़ी बड़ी आखों से देखती रही, कुछ बोली नहीं।)
उपरोक्त अभिव्यक्तियों के आधार पर रोगी को 200 पोटेंसी में हर एक घंटे पर दवा देना शुरू किया। दवा दिए जाने के बाद रोगी में आश्चर्यजनक सुधार हुआ।
अगले दिन विजिट पर देखा कि मुझे देख के रोगी उठकर बैठ गई थी । अब वह चलने फिरने भी लगी थी और खाना भी खाने लगी थी।
MIND – MOTION – agg.
MIND – BED – remain in bed; desire to
MIND – ALERT
(MIND – ALERT – movement; of every – doctor; of)
MIND – DULLNESS – understand; does not – questions addressed to her – repetition; only after
MIND – FEAR – murdered, of being
MIND – DELUSIONS – murdered – will be murdered; he
MIND – DELUSIONS – injury – being injured; is
MIND – FEAR – falling, of
MIND – CLINGING – persons or furniture; to
MIND – COMPANY – desire for – alone agg.; when
phos